बुधवार, 26 मई 2010

गोरे रंग के लिए

 
क्या आपको एक अच्छी नौकरी चाहिए? क्या आपको मनचाहे जीवनसाथी की तलाश है? या फिर करियर की ऊँची उड़ान भरना है? तो फौरन फेयरनेस क्रीम इस्तेमाल करना शुरू कर दीजिए। ऐसे ही दावे करते हैं फेयरनेस क्रीम के बेशुमार विज्ञापन।

जब सिमीसिंह छोटी थीं तो अकसर उनकी माँ उन्हें बाहर जाने से मना करती थीं। इसकी वजह अपनी बेटी को किसी मुश्किल या परेशानी से बचाना नहीं था, बल्कि वे तो उनकी त्वचा को धूप में काला होने से बचा रही थीं। वे नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी लड़कों की तरह सारा दिन धूप में खेलकर साँवली हो जाए। यह कहना है खुद सिमीसिंह का, जो अकसर बचपन में अपनी माँ की बात अनसुनी कर देती थीं।

आज इस 25 साल की सॉफ्टवेयर कंसलटैंट को अफसोस है कि उनका रंग साँवला है, लेकिन उन्हें विश्वास है कि उसके पास इसका समाधान है। फेयरनेस क्रीम, जो उन्होंने गोरेपन की होड़ में हाल ही में इस्तेमाल करना शुरू की है। वे कहती हैं-मेरी शादी होने वाली है और मैं सुंदर दिखना चाहती हूँ।

गोरे होने की इस होड़ के ऐतिहासिक कारण हैं। उनके मुताबिक भारत में गोरे रंग का महत्व अंग्रेजों के समय से है। गोरे रंग वाले को तभी से श्रेष्ठ माना जाता है। एशियाई देशों के लोगों के गहरे रंग को मेहनत और पसीने से जोड़ा जाने लगा।
उन्होंने कहा हमारे यहाँ तो गोरेपन को ही सुंदरता माना जाता है। मैं अभी अपने रंग से संतुष्ट नहीं हूँ। जब से मैंने फेयरनेस क्रीम लगाना शुरू की है, लोग मेरी तरफ देखने लगे हैं। कुछ तो मेरी खूबसूरती की तारीफ भी करने लगे हैं और इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है।

सिमीसिंह अकेली नहीं हैं। भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो दिल में गोरा होने की तमन्ना रखते हैं और इसके लिए अपने-अपने तरीके से जतन भी करते हैं।

लड़कियाँ ही नहीं, अब तो लड़के भी इस दौड़ में शामिल हो चुके हैं। शादी के विज्ञापनों में भी 'फेयर एंड ब्यूटीफुल' यानी "साफ और सुंदर" एक कसौटी बन चुकी है, इसीलिए टेलीविजन, पत्रिकाओं और सड़क किनारे लगे बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर आपको गोरा बनाने का दावा करने वाले विज्ञापनों की तादाद बढ़ती ही जा रही है।

इन सभी विज्ञापनों में अकसर एक अप्सरा सी सुन्दर और गोरी लड़की को दिखाया जाता है, जो कहती है कि उसकी सुंदरता का राज कोई खास फेयरनेस क्रीम है।

जहाँ पहले सिर्फ 'फेयर एन लवली' हुआ करती थी, वहीं अब लड़कों के लिए फेयर एन हैंडसम भी बाजार में आ गई है। इतना ही नहीं, अब तो गोरे होने के लिए क्रीम के अलावा साबुन, लोशन, क्रीम और पाउडर जैसी चीजें बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटी-छोटी जगहों पर भी मिलने लगी हैं।

मीरा कनिश्क एक मार्केट रिसर्चर हैं और कहती हैं कि गोरे होने की इस होड़ के ऐतिहासिक कारण हैं। उनके मुताबिक भारत में गोरे रंग का महत्व अंग्रेजों के समय से है। गोरे रंग वाले को तभी से श्रेष्ठ माना जाता है। एशियाई देशों के लोगों के गहरे रंग को मेहनत और पसीने से जोड़ा जाने लगा। जो वे खेतों में बहाते हैं, जबकि गोरे रंग को प्रधानता का पैमाना माना जाने लगा।

ये सब चीजें सामाजिक स्तर पर शुरू हुईं। धीरे-धीरे लोग गोरेपन को उच्च जीवन शैली और सुंदरता का प्रतीक मानने लगे। फेयरनेस क्रीम के इस्तेमाल का कारण चाहे जो हों, लेकिन इसके कुछ साइट इफेक्ट भी होते हैं, जो आपकी त्वचा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

स्वीनी विर्दी एक गृहिणी हैं और वे फेयरनेस क्रीम के साइड इफेक्ट भुगत चुकी हैं। वे बताती हैं टेलीविजन पर फेयरनेस क्रीम के बढ़ते विज्ञापन देखकर मैंने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया।

...लेकिन दस दिन के अंदर जहाँ मेरी त्वचा को साफ दिखना चाहिए था, वहाँ उसकी जगह अजीब से निशान पड़ चुके थे। मैं बिलकुल नहीं चाहती कि मेरी तरह कोई ऐसी बेवकूफी करे और न ही मैं किसी को फेयरनेस क्रीम इस्तेमाल करने की सलाह दूँगी।

भारत जैसे देश में, जहाँ करोड़ों लोग ज्यादा से ज्यादा गोरा दिखना चाहते हैं, वहाँ स्वीनी की सलाह मानने वाले लोग कम ही दिखते हैं। अब फेयरनेस क्रीम की बढ़ती लोकप्रियता गोरे होने का जुनून है, या फिर एक सामाजिक समस्या का नतीजा है, यह तय करना जरमुश्किल है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें