बुधवार, 26 मई 2010

नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार

नवरात्रि में माँ दुर्गा के औषधि रूपों का पूजन करें



पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

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माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं। माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बैठाकर संसार के प्रत्येक दुख से दूर करके सुखी रखती है।

जानिए नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने भक्तों को कैसे सुख पहुँचाते हैं। सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा। भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि रूप दे रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है। ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ हैं।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमा‍तेति षुठ कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौ‍र‍ीति चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता

ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है।

ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है। इस समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं को काल कहा जाता है।

प्रथम शैलपुत्री (हरड़) - प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। इस भगवती देवी शैलपुत्री को हिमावती हरड़ कहते हैं।
यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो सात प्रकार की होती है। हरीतिका (हरी) जो भय को हरने वाली है। पथया - जो हित करने वाली है।
कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है। अमृता (अमृत के समान) हेमवती (हिमालय पर होने वाली)।चेतकी - जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है। श्रेयसी (यशदाता) शिवा - कल्याण करने वाली

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द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) - दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है। ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।

क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति ने ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।

तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) - दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चनदुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। (इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है। ये कल्याणकारी है। इस औषधि से मोटापा दूर होता है। इसलिए इसको चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, खत को शुद्ध करने वाली एवं हृदयरोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी ने चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।




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चतुर्थ कुष्माण्डा (पेठा) - दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। ये औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हडा भी कहते हैं। यह कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करता है। एवं पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। यह दो प्रकार की होती है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति ने पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए।

पंचम स्कंदमाता (अलसी) - दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंद माता है। इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी के रूप में जानी जाती है। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।

अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए।

षष्ठम कात्यायनी (मोइया) - दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इस आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका इसको मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी ने कात्यायनी की माचिका प्रस्थिकाम्बष्ठा तथा अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका, खताविसार पित्तास्त्र कफ कण्डामयापहस्य।

सप्तम कालरात्रि (नागदौन) - दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा ले तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों की नाशक औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।

अष्टम महागौरी (तुलसी) - दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है। सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक, षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है।

तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्‍नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:

इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।

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नवम सिद्धदात्री (शतावरी) - दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है। जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक है। हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिधात्री का जो मनुष्ट नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।

इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।

गोरेपन की क्रीम से सावधान

 


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गोरा बनाने वाले उत्पादों में हाइड्रोक्विनॉन नामक केमिकल मिलाया जाता है, जो एक प्रकार का ब्लीचिंग होता है। इसके प्रभाव से त्वचा को रंग (काला या साँवला) देने वाली वर्णिकाओं के गुण नष्ट हो जाते हैं।

ऐसे सौन्दर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल शरीर के जिस अंग पर किया जाता है, वहाँ की त्वचा साफ यानी गोरी नजर आने लगती है।

इसके अलावा इस केमिकल के प्रभाव से मेलानिन का बनना बंद हो जाता है, जो त्वचा के नीचे कलर सेल्स को बनाने में मदद करता है।

हाइड्रोक्विनॉन के इस्तेमाल से सबसे बड़ा खतरा स्किन कैन्सर का रहता है। ऐसे किसी कॉस्मेटिक्स को इस्तेमाल न करने में ही समझदारी है।

गोरे रंग के लिए

 
क्या आपको एक अच्छी नौकरी चाहिए? क्या आपको मनचाहे जीवनसाथी की तलाश है? या फिर करियर की ऊँची उड़ान भरना है? तो फौरन फेयरनेस क्रीम इस्तेमाल करना शुरू कर दीजिए। ऐसे ही दावे करते हैं फेयरनेस क्रीम के बेशुमार विज्ञापन।

जब सिमीसिंह छोटी थीं तो अकसर उनकी माँ उन्हें बाहर जाने से मना करती थीं। इसकी वजह अपनी बेटी को किसी मुश्किल या परेशानी से बचाना नहीं था, बल्कि वे तो उनकी त्वचा को धूप में काला होने से बचा रही थीं। वे नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी लड़कों की तरह सारा दिन धूप में खेलकर साँवली हो जाए। यह कहना है खुद सिमीसिंह का, जो अकसर बचपन में अपनी माँ की बात अनसुनी कर देती थीं।

आज इस 25 साल की सॉफ्टवेयर कंसलटैंट को अफसोस है कि उनका रंग साँवला है, लेकिन उन्हें विश्वास है कि उसके पास इसका समाधान है। फेयरनेस क्रीम, जो उन्होंने गोरेपन की होड़ में हाल ही में इस्तेमाल करना शुरू की है। वे कहती हैं-मेरी शादी होने वाली है और मैं सुंदर दिखना चाहती हूँ।

गोरे होने की इस होड़ के ऐतिहासिक कारण हैं। उनके मुताबिक भारत में गोरे रंग का महत्व अंग्रेजों के समय से है। गोरे रंग वाले को तभी से श्रेष्ठ माना जाता है। एशियाई देशों के लोगों के गहरे रंग को मेहनत और पसीने से जोड़ा जाने लगा।
उन्होंने कहा हमारे यहाँ तो गोरेपन को ही सुंदरता माना जाता है। मैं अभी अपने रंग से संतुष्ट नहीं हूँ। जब से मैंने फेयरनेस क्रीम लगाना शुरू की है, लोग मेरी तरफ देखने लगे हैं। कुछ तो मेरी खूबसूरती की तारीफ भी करने लगे हैं और इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है।

सिमीसिंह अकेली नहीं हैं। भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो दिल में गोरा होने की तमन्ना रखते हैं और इसके लिए अपने-अपने तरीके से जतन भी करते हैं।

लड़कियाँ ही नहीं, अब तो लड़के भी इस दौड़ में शामिल हो चुके हैं। शादी के विज्ञापनों में भी 'फेयर एंड ब्यूटीफुल' यानी "साफ और सुंदर" एक कसौटी बन चुकी है, इसीलिए टेलीविजन, पत्रिकाओं और सड़क किनारे लगे बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर आपको गोरा बनाने का दावा करने वाले विज्ञापनों की तादाद बढ़ती ही जा रही है।

इन सभी विज्ञापनों में अकसर एक अप्सरा सी सुन्दर और गोरी लड़की को दिखाया जाता है, जो कहती है कि उसकी सुंदरता का राज कोई खास फेयरनेस क्रीम है।

जहाँ पहले सिर्फ 'फेयर एन लवली' हुआ करती थी, वहीं अब लड़कों के लिए फेयर एन हैंडसम भी बाजार में आ गई है। इतना ही नहीं, अब तो गोरे होने के लिए क्रीम के अलावा साबुन, लोशन, क्रीम और पाउडर जैसी चीजें बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटी-छोटी जगहों पर भी मिलने लगी हैं।

मीरा कनिश्क एक मार्केट रिसर्चर हैं और कहती हैं कि गोरे होने की इस होड़ के ऐतिहासिक कारण हैं। उनके मुताबिक भारत में गोरे रंग का महत्व अंग्रेजों के समय से है। गोरे रंग वाले को तभी से श्रेष्ठ माना जाता है। एशियाई देशों के लोगों के गहरे रंग को मेहनत और पसीने से जोड़ा जाने लगा। जो वे खेतों में बहाते हैं, जबकि गोरे रंग को प्रधानता का पैमाना माना जाने लगा।

ये सब चीजें सामाजिक स्तर पर शुरू हुईं। धीरे-धीरे लोग गोरेपन को उच्च जीवन शैली और सुंदरता का प्रतीक मानने लगे। फेयरनेस क्रीम के इस्तेमाल का कारण चाहे जो हों, लेकिन इसके कुछ साइट इफेक्ट भी होते हैं, जो आपकी त्वचा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

स्वीनी विर्दी एक गृहिणी हैं और वे फेयरनेस क्रीम के साइड इफेक्ट भुगत चुकी हैं। वे बताती हैं टेलीविजन पर फेयरनेस क्रीम के बढ़ते विज्ञापन देखकर मैंने भी इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया।

...लेकिन दस दिन के अंदर जहाँ मेरी त्वचा को साफ दिखना चाहिए था, वहाँ उसकी जगह अजीब से निशान पड़ चुके थे। मैं बिलकुल नहीं चाहती कि मेरी तरह कोई ऐसी बेवकूफी करे और न ही मैं किसी को फेयरनेस क्रीम इस्तेमाल करने की सलाह दूँगी।

भारत जैसे देश में, जहाँ करोड़ों लोग ज्यादा से ज्यादा गोरा दिखना चाहते हैं, वहाँ स्वीनी की सलाह मानने वाले लोग कम ही दिखते हैं। अब फेयरनेस क्रीम की बढ़ती लोकप्रियता गोरे होने का जुनून है, या फिर एक सामाजिक समस्या का नतीजा है, यह तय करना जरमुश्किल है।

सुंदरता के अचूक नुस्खे

 

प्राकृतिक पेय पदार्थ जैसे गुलाब, खस और अन्य मौसमी फलों का रस पिएँ। इससे आपकी त्वचा दमकती रहेगी।

तिल को दूध में डालकर पीस लें व उबटन की तरह लगाएँ। चेहरे व हाथ-पैर की धूल निकल जाएगी और चमक भी आ जाएगी।

पुदीने का रस नियमित रूप से चेहरे पर लगाने से दाग-धब्बे हल्के पड़ जाते हैं।

आँखों में जलन और थकावट महसूस होने पर आँखों के ऊपर गुलाब जल में भीगे रुई के फाहे रखने से लाभ होता है।

युवावस्था में मालिश जरूरी

 
Health Care Tips

प्रतिदिन तेल मालिश करने से बुढ़ापे के लक्षण, थकावट और वायु नष्ट होती है।

दृष्टि निर्मल होती है, शरीर पुष्ट होता है, आयु बढ़ती है, नींद अच्छी आती है।

त्वचा निर्मल, चमकीली और झुर्रीरहित होती है एवं शरीर सुदृढ़ बना रहता है।

जिस प्रकार तेल के लेप से घड़ा, तेल लगाने से चमड़ा, गाड़ी के पहिए का अक्ष यानी धुरी (एक्सिल) या लाठी आदि पदार्थ मजबूत और रगड़ को सहने की क्षमता वाले हो जाते हैं।

उसी प्रकार शरीर पर तेल की मालिश करने से त्वचा दृढ़ और सुन्दर होती है, शरीर मजबूत होता है।

वातजन्य रोग नहीं होते तथा शरीर में श्रम, व्यायाम और क्लेश सहने की शक्ति आती है।

तेल मालिश करने से त्वचा चिकनी, स्पर्श में कोमल, बलवान और देखने में सुन्दर हो जाती है।

शरीर सुन्दर, बलवान और प्रियदर्शी होता है तथा बुढ़ापे के लक्षण कम प्रकट होते हैं।

युवावस्था में यूँ तो स्वाभाविक रूप से त्वचा सुंदर होती है लेकिन इसी उम्र में मुँहासों की समस्या भी सिर उठाती है। अत: अपनी त्वचा की प्रकृति को समझ कर तेल का चयन करें।

नित्य नियमपूर्वक मालिश करके इसके गुण-लाभ देखें जा सकते हैं। हमारे शरीर के स्वास्थ्य, रूप और यौवन पर मालिश का अच्छा प्रभाव पड़ता है।

साँवली त्वचा को सलोनी बनाएँ

यूँ तो साँवली त्वचा की खूबसूरती पर कवियों ने अपनी कलम खूब चलाई है। बावजूद इसके साँवला रंग युवा वर्ग में परेशानी का सबब बना हुआ है। गोरेपन की क्रीम के झाँसे में फँसने के बजाय बेहतर होगा कि अपनी त्वचा को निखरी और सलोनी बनाने के प्रयास किए जाए। दुनिया की कोई भी क्रीम आपको गोरा नहीं बना सकती अत: आपको जो त्वचा प्राकृतिक रूप से मिली है उसी को स्वस्थ और आकर्षक बनाने के जतन करने चाहिए।


Tips for Youth

साँवली त्वचा को सलोनी रंगत देने के लिए अपनी मजीठ, हल्दी, चिरौंजी 50-50 ग्रा. लेकर पाउडर बना लें। एक-एक चम्मच सब चीजों को मिलाकर इसमें 6 चम्मच शहद मिलाएँ और नींबू का रस तथा गुलाब जल डालकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चेहरे, गरदन, बाँहों पर लगाएँ और एक घंटे के बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो दें। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से चेहरे का साँवलापन दूर होकर रंग निखर आएगा।

नींबू व संतरे के छिलकों को सुखाकर चूर्ण बना लें। इस पाउडर को हफ्ते में एक बार बिना मलाई के दूध में मिलाकर लगाएँ, त्वचा में आकर्षक चमक आएगी।

जाड़े के दिनों में दूध में केसर या एक चम्मच हल्दी का सेवन करने से भी रक्त साफ होता है, फलस्वरूप रंग भी खिल उठता है।

हल्दी : कारगर एंटीसेप्टिक

हमारे देश ही नहीं, दुनियाभर में स्वाइन फ्लू का साया तेजी से फैलता जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए। इसके लिए आपकी रसोई में काम आने वाली हल्दी अच्छा उपाय हो सकती है। यह केवल एक मसाला नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से गुणकारी दवा भी है। सब्जी, दाल हो या फिर कोई और नमकीन व्यंजन।

यहाँ तक कि कई मिठाइयों में भी हल्दी का प्रयोग किया जाता है। हल्दी लजीज व्यंजनों का स्वाद तो बढ़ाती ही है त्वचा, शरीर और पेट संबंधी कई रोगों में भी काम आती है। हल्दी के पौधे की जड़ से मिलने वाली गांठें ही नहीं, इसके पत्ते भी उपयोगी होते हैं।

गुणकारी हल्दी के अलग-अलग लाभ उठाने के लिए आपको किसी वैद्य या विशेषज्ञ की शरण में जाने की जरूरत नहीं है। अपने घर पर ही छोटे-छोटे प्रयोग कर इसके अलग-अलग लाभ उठाए जा सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। खून को साफ करती है। महिलाओं की पीरियड से जुड़ी समस्याओं को भी दूर करती है।

लीवर संबंधी समस्याओं में भी इसे गुणकारी माना जाता है। यही वजह है कि सर्दी-खाँसी होने पर दूध में कच्ची हल्दी पाउडर डालकर पीने की सलाह दी जाती है। जरूरी है कि हल्दी को हमेशा एयर टाइट कंटेनर में रखें ताकि इसके स्वाद और गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आए।